ज़िंदगी लंबी लगने लगी है पर वक़्त बहोत कम है,
दिल-ए-आरज़ू में अब भी कितने खम है|
होता अगर तो पूरे करता वह हर एक ख्वाब,
अफ़सोश अपनी किस्मत भी इन आँखों की तरह नम है |
दिल-ए-आरज़ू में अब भी कितने खम है|
होता अगर तो पूरे करता वह हर एक ख्वाब,
अफ़सोश अपनी किस्मत भी इन आँखों की तरह नम है |
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