हम कहाँ रहे तेरे गम-गुसIरों में,
उम्मीद-ए-नज़र लिए बैठे हैं रIहगुज़ारों में
कIशीद से भी ना मिलती है कोई खबर अब तो,
हम भी शामिल हो गये है बे-सह|रो में,
उम्मीद-ए-नज़र लिए बैठे हैं रIहगुज़ारों में
कIशीद से भी ना मिलती है कोई खबर अब तो,
हम भी शामिल हो गये है बे-सह|रो में,