Thursday, December 29, 2016

Aarzo

और कौन कर सकता है मेरी आरज़ु मुकम्मल,
बस कुछ ख्वाब ही है जो हर वक़्त मयस्सर रहता है |
मेरी तन्हाइयों को दूर से आवाज़ दे कर ,
ओ अक्स की तरह बेख़बर रहता है |

Tuesday, October 4, 2016

Letter

हम कहाँ रहे तेरे गम-गुसIरों में,
उम्मीद-ए-नज़र लिए बैठे हैं रIहगुज़ारों में
कIशीद से भी ना मिलती है कोई खबर अब तो,
हम भी शामिल हो गये है बे-सह|रो में,

Destiny

ज़िंदगी लंबी लगने लगी है पर वक़्त बहोत कम है, 
दिल-ए-आरज़ू में अब भी कितने खम है|
होता अगर तो पूरे करता वह हर एक ख्वाब, 
अफ़सोश अपनी किस्मत भी इन आँखों की तरह नम है |

Dream and Perseverance

बस यही दो मसले जिंदगीभर ना हल हुए ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए
वक़्त ने कहा काश थोड़ा और सब्र होता सब्र ने कहा काश थोड़ा और वक़्त होता
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अगर मुकम्मल होते ख्वाब तो फिर वो ख्वाब कैसा? शब्र और वक़्त तो फ़लसफ़े है ज़िंदगी के, इसमें हिसाब कैसा?

Ignorance

मेरी आँखे नम है, और अब लब्ज भी कुछ कम है, ज़िंदगी के अफ़सानो में अब भी ढेरो खम है,
ज़ाहिर है हम नासना हो ज़िंदगी के उलझानो से, ए वक़्त तो गुज़र रहा पर सीने में वही गम है

Reflection

एक तस्वीर जो साफ़ थी अब धुंधली दिखती है  तेरी तस्सवुर में ये साँसे थमी रहती है ये ख्वाब है या माज़ी की परच्छाई हर आहट पे निगाहें जमी रहती है

Potka Centre

Potka Centre
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